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मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

प्रेम

यह लगी कौन सी है आखिर
कैसी है धुन मेरे मन में
किस जन्म का रिश्ता है जाने
तेरी जानिब मै बार-बार
क्यूँ ऐसे खिंचता जाता हूँ
जैसे मेरा कुछ वश ही नहीं
मेरी इस नश्वर काया पर

तेरी पलकों के झूले में
इक छोटी बच्ची बैठी है
वो मुझे बुलाती है निशिदिन
सपनो में आती है निशिदिन

उन्ही पलकों को बंद किये
अधरों पे इक मुस्कान लिए
तुम फिर रही हो उंगलियाँ
उलझे गेसू के तारों में
चहुँ ओर सुनाई   देता है
बजती वीणा का नया राग

मेरे भावों के अम्बर में
तेरे चेहरे का लाल रंग
तेरे चेहरे का लाल रंग
मेरे भावों के अम्बर में
उन्मत दिनकर सा दमक रहा
तपते होठों के तीरों से
इक नदी बहे अंगारों की
मै प्यासा उस जलते जल का
उस जलते जल का मै प्यासा
मुझको न चाहिए शीतलता

जिस पथ से अनगिन गुजर रहे
मै पथिक नहीं हूँ उस पथ का
मै मतवाला,मतिहीन ,मूढ़
निर्जन राहों का मै राही
तेरे आँचल पर चलता हूँ
चाहो तो मुझे गिरा दो तुम
आकाश में आँचल लहरा कर
फिर हंसो मेरे पागलपन पर
मेरी पूजा पर हंसो प्रिये
इस चाहत का उपहास करो 
तुम सितम करो मुझ पर जितना
तुम पाओगी मै डिगा नहीं
मेरी आँखें है जस की तस
जस की तस है मेरी बाहें
बस इंतज़ार में खुली हुई
क्या सोंच रही हो छुई-मुई

मेरी ख्वाहिश से डरो नहीं
प्रियतम उफ़-उफ़ तो करो नहीं
मै अभी चला,मै हुआ विदा
मै हुआ विदा, मै अभी चला

आखिर रुक पाता कौन यहाँ
बस मौन बचा है,मौन यहाँ
पर कुछ पल ऐसे भी होंगे
मेरे बेमतलब किस्से में
मै खुश हो लूँ,रुठुं,मचलूँ
लम्बी-लम्बी साँसें ले लूँ
उस पल में कुछ मै मर-जी लूँ
जो पल है मेरे हिस्से में

तेरी पलकों के झूले में
बैठी है जो छोटी बच्ची
उसके नन्हे पावों में मै
पाजेब बना कर पहना दूँ
जो प्यार बसा है सीने में

तेरी खुशियों के आँगन में
छोटी बच्ची जब दौड़ेगी
मै रुन-झुन ताल बजाऊंगा
हो जायेगा फिर तुमको यकीं
मै मिट जाऊं,तुम मिट जाओ
लेकिन मिटता है प्यार नहीं
लेकिन मिटता है प्यार नहीं .