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शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

ग़ज़ल

वो जो आँखे मूंद कर कुछ कल्पना करने लगे
भूल वश समझा गया कि साधना करने लगे

औपचारिकता भरी दो-चार बातें क्या हुईं
आप तो संजीदगी से चाहना करने लगे

प्यार की शुरुआत में ही हदें सारी तोड़ दीं
टोकना हर बात पर,आलोचना करने लगे

कुछ दिनों तक हर सितम हँस कर सहे जाते रहे
कुछ दिनों  के  बाद  ही  अक्सर  मना   करने  लगे

एक अरसा साथ रह कर भी न मन की थाह थी
एक  पल  में  देह  की  सम्भावना  करने लगे

दूध पीकर भी न बच्चा चुप हुआ जब देर तक
हार कर,पुचकार कर, फिर झुनझुना करने लगे
 

बेहतर होता जो इनको काट देते जड़ से हम
लोग दिल के जंगलों को क्यूँ घना करने लगे

ग़ज़ल

चाँद, सूरज जमीन पर लाओ
प्यार करते हो तो कुछ कर लाओ

बाद मुद्दत के हम मिले होंगे
गुजरे वक्तों की कुछ खबर लाओ

आज तन्हाईओं की चाहत है
कल्ह कहोगे की इक शहर लाओ

मेरी हालत का कुछ पता तो चले
ज़िन्दगी उनको मेरे घर लाओ

देखूं किस्मत में कहीं हूँ की नहीं
हाथ अपना जरा इधर लाओ

ये भी क्या इन उदास आँखों में
बातों बातों में अश्क भर लाओ

बुधवार, 11 अगस्त 2010

ग़ज़ल

ख्वाब बन कर दिलों में रहते हैं
कुछ सफ़र मंजिलों में रहते हैं

तन बहुत पास-पास हों,पर मन
बारहा फ़ासलों में रहते हैं

खौफ खाते हैं खुद के साये से
लोग जो महफ़िलों में रहते हैं

हर नए मोड़ पर नए रिश्ते
वक़्त के सिलसिलों में रहते हैं

यूँ मुहब्बत है तेरी आँखों में
जैसे जल बादलों में रहते हैं

दूरियां

एक तो तुम भी बहुत दूर खड़े थे मुझसे
और आवाज़ मिरी कांपती थी वैसे ही
तुम अगर सुनते भी तो क्यूँ सुनते

नर्म,मासूम से जज्बात जुबाँ चाहते थे 
जर्द होठों पे इक जुंबिश के सिवा कुछ न हुआ 
थी खलिश सीने मे पैबस्त औ पैबस्त  रही


हौसला मैंने बहुत बार किया होगा पर
जाने पैरों में कहाँ से पड़ी ये जंजीरें
मै दो कदम भी चलता तो वहीँ गिर जाता


एक दीवार दरमियान रही झीनी सी
देख तो सकते थे हम पार  एक दूजे को
तोडना उसको मेरे वश में नहीं था या रब


हसरतें दिल में दबा ली इन्ही उम्मीदों पे
कल्ह जो चमकेगा चाँद पूनम का
मेरी किस्मत पे  मेहरबां होगा

चांदनी तीरगी को पी लेगी
मै भी खोये हुए अशआरों को
उस उजाले में ढूंढ़ लूँ शायद .