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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

अमर कर दूँ तुझे कुछ इस तरह मैं....


 
किया करता हूँ ख़ुद से ही ज़िरह मैं 
पशेमां किसलिए हूँ इस तरह मैं

लगे ख़्वाबों के पंछी फिर चहकने 
करूँ कैसे उन्हें फिर से ज़िबह मैं 

लिखो गर लिख सको तो हर्फे रौशन 
वरक उजला नहीं हूँ,हूँ सियह मैं

झिझक से तुम जो अपने आओ बाहर
तो दिल की खोल दूँ इक-इक गिरह मैं

मुझे कोसेंगी मेरे बाद नस्लें 
उजाला तीरगी को दूँ तो कह मैं

मुझे बेकार मुझमे ढूंढते हो
बचा हूँ ही नहीं अब शख्स वह मैं

करूँ ऐसा कि ग़म में  डूब जाऊं 
तभी तो पाउँगा फिर इसकी तह मैं

तुझे पहनाऊं पैराहन ग़ज़ल का 
अमर कर डालूं तुझको इस तरह मैं.

पशेमां- शर्मिंदा
ज़िबह-गला रेतना
हर्फे-रौशन- चमकदार अक्षर
वरक- पृष्ठ
नस्लें-पीढियां
सियह- काला
तीरगी- अँधेरा  
पैराहन- वस्त्र