कहते- कहते अटक गया है
चंचल मन फिर भटक गया है
उसका कह कर के ना आना
अब की सचमुच खटक गया है
कटी- कटी तस्वीरें क्यूँ हैं
शायद शीशा चटक गया है
पानी अंजुल भर था जिसको
सूरज कब का गटक गया है
ठगा-ठगा है खड़ा सड़क पर
कोई बटुआ झटक गया है
वक़्त नए कुछ दांव चल कर
फिर से उसको पटक गया है
पहुँच हीं जायेगा घर 'छठ' में
बबन ट्रेन में लटक गया है
चंचल मन फिर भटक गया है
उसका कह कर के ना आना
अब की सचमुच खटक गया है
कटी- कटी तस्वीरें क्यूँ हैं
शायद शीशा चटक गया है
पानी अंजुल भर था जिसको
सूरज कब का गटक गया है
ठगा-ठगा है खड़ा सड़क पर
कोई बटुआ झटक गया है
वक़्त नए कुछ दांव चल कर
फिर से उसको पटक गया है
पहुँच हीं जायेगा घर 'छठ' में
बबन ट्रेन में लटक गया है
सौरभ जी,
जवाब देंहटाएंजिंदगी की छोटी सच्चाइयों से भरी ये ग़ज़ल बहुत खुबसूरत लगी|
beautiful
जवाब देंहटाएंshabdo ka khubsurat tana - bana
achchhi ghaZal!
जवाब देंहटाएंpahle wali ke mukable bhi....
Rahul Rajesh,
Ahm