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शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

ग़ज़ल

शहर का शख्श हर उसके दवा की बात करता है
जिसके फजल से गूंगा सुना कि बात करता है

वो जिसकी जल गई बेटी बड़ा नादान है यारों
कचहरी में वकीलों से सजा की बात करता है

खुदा जाने किताबों में पढ़ाते हैं भला क्या-क्या
कि मेरा फूल सा बच्चा नफा की बात करता है

जहाँ से आजतक लौटा नहीं आशिक कोई जिन्दा
वहीँ का आदमी है यह वफ़ा की बात करता है

यक़ीनन तल्ख़ गम होगा,बहुत गहरा वहम होगा
भला वह क्यूँ उजालों में दिया की बात करता है

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर ग़ज़ल..
    :: खुदा जाने किताबों में पढ़ाते हैं भला क्या-क्या
    कि मेरा फूल सा बच्चा नफा की बात करता है ::
    यह शेर तो पूरे समाज का आइना है !

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  2. खुदा जाने किताबों में पढ़ाते हैं भला क्या-क्या
    कि मेरा फूल सा बच्चा नफा की बात करता है

    बहुत ही खूब एक एक शब्द भाव से लबरेज़ है

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  3. सुन्दर रचना ............पर मेरी नज़र में कुछ कमियां है इसमें ........एक कोशिश करता हूँ कुछ सुधार की .....उम्मीद है आपको बुरा नहीं लगेगा .......पेश है -

    "शहर का हर शख्स , उसकी दवा की बात करता है
    जिसके फजल से सुना है कि गूंगा भी बात करता है,

    वो जिसकी बेटी जल गई, वो बड़ा नादान है यारों
    कचहरी में वकीलों से, वो सजा की बात करता है,

    खुदा जाने किताबों में पढ़ाते हैं भला क्या-क्या
    कि मेरा फूल सा बच्चा, नफे की बात करता है,

    जहाँ से आज तक लौटा नहीं कोई आशिक जिन्दा
    वहीँ का आदमी है यह, और वफ़ा की बात करता है,"

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  4. वो जिसकी जल गई बेटी बड़ा नादान है यारों
    कचहरी में वकीलों से सजा की बात करता है

    वाह...वाह....वाह....भाई वाह....
    नीरज

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