अच्छी होती रही कमाई पिछले साल
लेकिन जम कर नींद न आई पिछले साल
वैसे खूं का घूँट गटकने की आदत है
बार-बार आई उबकाई पिछले साल
जैसी पिछले साठ बरस से आती आईं
वैसी ही सरकारें आई पिछले साल
लोहड़ी,होली,ईद,दिवाली,छठ की पूजा
लील गई सबको मंहगाई पिछले साल
जिन्हें कुबूला था और जिनसे तौबा की थी
फिर से वो गलती दुहराई पिछले साल
थक गए यहाँ-वहां जब दिल के डोरे डाल
अच्छी लगने लगी लुगाई पिछले साल
पिछले साल को याद करती अच्छी ग़ज़ल.. बढ़िया व्यंग्य है.. नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर पहुँच आपकी रचनाओ का रसास्वादन कर बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंभाई
जवाब देंहटाएंइन गज़लों को पहले ही पढ़ लिया था.
भले आज कंमेंट चेप रहा हूँ.
अच्छी गज़लें हैं.
रदीफ-काफिया का तो पता नहीं,
पर पढ़नें में प्रिय लगती हैं.
हाँ, तुम गज़ल कहने का शौक रखते हो
तो तुम्हें गज़ल के व्याकरण का ज्ञान रखना उचित होगा.
यह इसलिए कि अगर ढांचा मजबूत होगा तो उसपर उम्दा मकां बनाना
आसान होगा. मलमल का लिबास हो तो चंदन का बदन तो चाहिए ही.
खैर, अच्छी गज़ले कह रहे हो. बधाई.
राहुल राजेश
अहमदाबाद