इक दिन सोई दुनिया में वाकई हलचल ले आयेंगे
ना देखा ना सुना कभी हो ऐसे पल ले आयेंगे
नयनों का विस्तार रंगेगे खूब रुपहले रंगों से
जैसे सूखी धरती की खातिर बादल ले आयेंगे
तुम अपनी मर्जी के रस्ते और दिशाएं चुन लेना
चूँकि खुले विकल्पों के हम जंगल ले आयेंगे
एक ओर नादान पुत्र की रोज बदलती फ़रमाइश
वहीँ पिता का वही जवाब,बेटा कल ले आयेंगे
एक जरा सा भ्रम टूटे गर झूठ,जुर्म की ताकत का
लोग गवाही देने को फिर खुद ही चल चल आयेंगे
सौरभ जी,
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लगाई है.....ये शेर बहुत अच्छा लगा -
एक ओर नादान पुत्र की रोज बदलती फ़रमाइश
वहीँ पिता का वही जवाब,बेटा कल ले आयेंगे
यहाँ शायद कुछ टाइपिंग में गलती हुई है....
बदल - बादल
रस्ते - रास्ते