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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

ग़ज़ल

इक दिन सोई दुनिया में वाकई हलचल ले आयेंगे
ना देखा ना सुना कभी हो ऐसे पल ले आयेंगे

नयनों का विस्तार रंगेगे खूब रुपहले रंगों से
जैसे सूखी धरती की खातिर बादल ले आयेंगे

तुम अपनी मर्जी के रस्ते और दिशाएं चुन लेना
चूँकि खुले विकल्पों के हम जंगल ले आयेंगे

एक ओर नादान पुत्र की रोज बदलती फ़रमाइश
वहीँ पिता का वही जवाब,बेटा कल ले आयेंगे

एक जरा सा भ्रम टूटे गर झूठ,जुर्म की ताकत का
लोग गवाही देने को फिर खुद ही चल चल आयेंगे

1 टिप्पणी:

  1. सौरभ जी,

    वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल लगाई है.....ये शेर बहुत अच्छा लगा -

    एक ओर नादान पुत्र की रोज बदलती फ़रमाइश
    वहीँ पिता का वही जवाब,बेटा कल ले आयेंगे

    यहाँ शायद कुछ टाइपिंग में गलती हुई है....

    बदल - बादल
    रस्ते - रास्ते

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