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मंगलवार, 11 मई 2010

ग़ज़ल

बदलते वक़्त की हलचल कहेगा
मेरी कोशिश को फिर से छल कहेगा

घुटन,आंसू,शरारों,सिसकियों को
वो कब तक यूँ सुनेहरा कल कहेगा

कवि है औ कवि से कैसा डरना
करेगा कुछ नहीं केवल कहेगा 

सवालों का निशाना है वो सबका 
न जाने कौन उसको हल कहेगा

हमारी चुप्पियों की दास्तानें
कहेगा आने वाला कल कहेगा

1 टिप्पणी:

  1. "घुटन,आंसू,शरारों,सिसकियों को
    वो कब तक यूँ सुनेहरा कल कहेगा"
    bahut sunder baat keh rahe hain aap ! gambhir !

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