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बुधवार, 26 जनवरी 2011

ग़ज़ल

तूफां है जेहन में जिनके,सपने झंझावात के
ग़ज़ल वही बेख़ौफ़ कहेंगे बेपरवा खैरात के

उनको बाहर रोको लीडर खुद ही मिलने आयेंगे
नाहक हरी लान रौन्देंगे ये किसान देहात के

कूड़े के ढेरों में जिनका सारा बचपन बीत गया
आखिर वे कैसे समझेंगे अर्थ कलम,दावात के

रोजाना अख़बार भरे हैं हर सूं भूख,गरीबी से
क्या करना है पढ़ कर किस्से माजी में इफरात के

आओ ढाल दें गर्म लहू को साथी ठन्डे लोहे में
ऐसे कब तक छटपटायेंगे हो बंदी हालात के

मेरा सीधा मतलब था कि प्यार तुम्हे मै करता हूँ
वैसे चाहो तो निकलेंगे कई मतलब हर बात के  

2 टिप्‍पणियां:

  1. सचमुच आपके इस ग़ज़ल से कई बाते निकल रही हैं..

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  2. कूड़े के ढेरों में जिनका सारा बचपन बीत गया
    आखिर वे कैसे समझेंगे अर्थ कलम,दावात के

    लाजवाब...
    नीरज

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