सपने में माँ-पिताजी इकठ्ठे आये
माँ-पिताजी का प्रेम इकठ्ठे आया
पिताजी ने माँ के हाथों की टोकड़ी ले ली
माँ ने पिताजी की कोहनी थाम ली
दोनों इकठ्ठे चलने लगे
चलते-चलते माँ थक गई और पिता जी झल्ला गए
फिर तालाब के किनारे,पीपल के पेड़ के नीचे
दोनों सुस्ताने के लिए बैठ गए
माँ ने पिता जी को पंखा किया
पिता जी ने माँ को पानी पिलाया
पानी पी कर माँ ने पिता जी को ऐसे देखा
कि पिता जी शरमा गए
माँ को पिता जी का शरमाना बड़ा अच्छा लगा
लेकिन पिता जी झट से उठ कर खड़े हो गए
बोले-
चलो चलते है
घर पर बच्चे अकेले होंगे.
माँ-पिताजी का प्रेम इकठ्ठे आया
पिताजी ने माँ के हाथों की टोकड़ी ले ली
माँ ने पिताजी की कोहनी थाम ली
दोनों इकठ्ठे चलने लगे
चलते-चलते माँ थक गई और पिता जी झल्ला गए
फिर तालाब के किनारे,पीपल के पेड़ के नीचे
दोनों सुस्ताने के लिए बैठ गए
माँ ने पिता जी को पंखा किया
पिता जी ने माँ को पानी पिलाया
पानी पी कर माँ ने पिता जी को ऐसे देखा
कि पिता जी शरमा गए
माँ को पिता जी का शरमाना बड़ा अच्छा लगा
लेकिन पिता जी झट से उठ कर खड़े हो गए
बोले-
चलो चलते है
घर पर बच्चे अकेले होंगे.
नए सोच के साथ नई कविता... बहुत बढ़िया.... माता पिता को एक साथ देखना अच्छा लगा..
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