लकड़ी का तो था नहीं प्रेम
जिसे किसी कुल्हाड़ी या आग का डर हो
या जो समय की लहरों पर तिरता रहता
प्रेम चुम्बक था और ठोस लोहे का बना था
शायद इसीलिए समय कि लहरों में जब पड़ा तो डूब गया
हमें यह तो लगता था कि पड़ा होगा प्रेम कहीं तलहटी में गहरे
लेकिन जंग लगा हुआ लोहा भी हो सकता था वह
फिर एक दिन मैंने पारदर्शी समय में गोता लगा ही दिया
मैंने देखा कि लोहे में जंग नहीं लगा है
वह तो किसी सीपी में बंद पड़े-पड़े दो मोतियों में ढल गया है
मै क्या करता?
दोनों मोतियाँ निकाल लाया
और हौले से तुम्हारी हथेलियों में धर दिया
तुमने उनकी दो मालाएं बनाईं
एक मेरे गले में डाल
एक खुद पहन लीं
अब वहीँ लटक रहा है प्रेम का मोती
हमारे ह्रदय को छू रहा है .
जिसे किसी कुल्हाड़ी या आग का डर हो
या जो समय की लहरों पर तिरता रहता
प्रेम चुम्बक था और ठोस लोहे का बना था
शायद इसीलिए समय कि लहरों में जब पड़ा तो डूब गया
हमें यह तो लगता था कि पड़ा होगा प्रेम कहीं तलहटी में गहरे
लेकिन जंग लगा हुआ लोहा भी हो सकता था वह
फिर एक दिन मैंने पारदर्शी समय में गोता लगा ही दिया
मैंने देखा कि लोहे में जंग नहीं लगा है
वह तो किसी सीपी में बंद पड़े-पड़े दो मोतियों में ढल गया है
मै क्या करता?
दोनों मोतियाँ निकाल लाया
और हौले से तुम्हारी हथेलियों में धर दिया
तुमने उनकी दो मालाएं बनाईं
एक मेरे गले में डाल
एक खुद पहन लीं
अब वहीँ लटक रहा है प्रेम का मोती
हमारे ह्रदय को छू रहा है .
सौरभ जी,
जवाब देंहटाएंवाह सौरभ जी.....क्या बात है प्रेम का अनछुआ पहलू .....बहुत सुन्दर|
bahut bahidya ..
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से सजी ..
जवाब देंहटाएं..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |