चलो अब साफ़ कर के रंजो-गम की झाड़ियों को
मुहब्बत से सजा दें हम दिलों की क्यारियों को
सफ़र की मुश्किलों का खूब रख एहसास लेकिन
घड़ी भर खिलखिला ले भूल जा दुशवारियों को
अपुन के वास्ते इक सीधा-साधा जोड़ काफी
मुबारक लाभ-हानि का गणित व्यापारियों को
मुझे हैरत नहीं है के ये आखिर क्यूँ जमाना
सनक कहता रहा है कीमती खुद्दारियों को
ये हो सकता है कि फैशन में हो पोशाके-जंगल
समझ वनराज मत लेना फकत तुम धारियों को
न जाने क्यूँ मेरे दिल में है ये उम्मीद बाकी
किसी दिन शर्तिया आएगी सुध अधिकारियों को
अपुन के वास्ते इक सीधा-साधा जोड़ काफी
जवाब देंहटाएंमुबारक लाभ-हानि का गणित व्यापारियों को
वाह..वा...बेहतरीन...कमाल किया है आपने इस ग़ज़ल में...मेरी दिली दाद कबूलें...
नीरज
बेहतरीन ग़ज़ल!
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