बच्चे लगभग सारे ऐसे थे
जो समय से पहले बड़े हो चुके थे
कुछ ऐसे भी थे
जो बुढा गए से लगते थे
और उन्हें 'प्रोजेरिया' भी नहीं हुआ था
जवान
बहुधा अपने बचकानेपन से बाज नहीं आ रहे थे
कुछ जवान,जवानों की तरह
तन कर भी खड़े थे
तो बूढों की तरह झुक चुके
जवानों के नज़ारे भी आम थे
अधिकांश बूढ़े या तो मंदिर में बैठे थे
या खांस रहे थे
कुछ जरूर बच्चों की तरह ललचा रहे थे
जबकि कुछ बूढों के भीतर
बेपनाह जवानी जोर मार रही थी
वे वर्जिश कर रहे थे
अच्छा चित्र खींचा है आपने...
जवाब देंहटाएंनीरज