न जाने कब से तेरी राह यूँ तकता रहा हूँ
रहा हूँ महफ़िलों में या कि मै तन्हा रहा हूँ
तुम्हारी जूस्तजू में रात-दिन खोया रहा हूँ
रियाया हूँ मै लेकिन हाकिमे-तू-सल्तनत है
मै सदियों से तेरे पैरों तले बिछता रहा हूँ
मिले मंजिल गवारा तुझको ही शायद नहीं है
मै अपनी ओर से हर वक़्त ही चलता रहा हूँ
खुदाया मेरी आँखों को हंसी कुछ ख्वाब दे दे
बहुत दिन से अधूरी नींद मै जगता रहा हूँ
यही लगता है कि तुझको कोई परवा नहीं है मै कहने को भला क्या क्या नहीं कहता रहा हूँ
रियाया हूँ मै लेकिन हाकिमे-तू-सल्तनत है
जवाब देंहटाएंमै सदियों से तेरे पैरों तले बिछता रहा हूँ
वाह...बेहतरीन...जबरदस्त ग़ज़ल ...बधाई स्वीकारें...
नीरज
रियाया हूँ मै लेकिन हाकिमे-तू-सल्तनत है
जवाब देंहटाएंमै सदियों से तेरे पैरों तले बिछता रहा हूँ...
सबसे बढ़िया शेर !