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शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

लड़का

लड़के के पिता पोस्टमैन थे
लड़के की कद-काठी
दरमियानी और रंग सांवला था
मगर लड़का
पैदाईशी  सवर्ण था
लड़का जब स्कूल में था
तो दलित हेडमास्टर साहब कहा करते थे
'सवर्ण भूखा भी हो तो पढ़-लिख लेता है'
पढ़ा-लिखा था भी वह
मगर नौकरी .......
लड़के के पिता ने कुंडली देख कर हीं कहा था
'संघर्षों से भरा जीवन होगा इसका'

घर में बंटवारे के बाद
डेढ़ बीघा जमीन उसके हिस्से आई थी
चौंतीस की उम्र को तो 
आधी ज़िन्दगी गुजर जाना हीं कहेंगे
फिर लड़का लग्न बाधा का भी शिकार था
पिता प्रायः कहते थे-
शादी हो भी जाये
तो खिलायेगा कहाँ से?
हमारा होटल
तो अब बंद हीं समझो

फ़िल्मी गाने लड़के का आसरा थे
वो रात को रेडियो
सिरहाने रख कर सोता था
और सुबह-सुबह
पाजामे पर कुरता डालना नहीं भूलता था

लड़का
मेट्रो टाउन में भी हाथ आजमा चुका था
सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी
तीन हज़ार की थी तो सही
लेकिन उसे लगता कि
कोई दिन-रात उसकी कनपटियों
 पर झापड़ लगा रहा है

एक दिन उसने सुना कि उसके गृह-राज्य में
'शिक्षा मित्र' नाम की गाडी खुली है
वह सर पर पैर रख कर भागा
जब तक घर पहुंचता
गाडी स्टेशन छोड़ चुकी थी

लड़का उठाने को तो हल भी उठा सकता है
पर आजकल
अपनी बदकिस्मती को
कंधे पर उठाए फिर रहा है.


   

2 टिप्‍पणियां:

  1. लड़का उठाने को तो हल भी उठा सकता है
    पर आजकल
    अपनी बदकिस्मती को
    कंधे पर उठाए फिर रहा है.


    सही कहा है आपने ...पर वक़्त का तकाजा ही कुछ ऐसा है ..

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