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सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

तस्वीरें

कैमरे में कोई हज़ार से ज्यादा
तस्वीरें होंगी
उन्हें इकठ्ठे  देख पाना तो मुश्किल है हीं
अगर याद करना पड़े कि
कौन सी तस्वीर कहाँ हो सकती है 
तो और मुसीबत 

लैपटॉप  तस्वीरों से भरा है 
उनमे खुद की उतारी 
तस्वीरों के अलावा 
दूसरों के द्वारा उतारी गई 
तस्वीरों का भी जखीरा है 

तस्वीरें फेसबुक,ऑरकुट पर भी हैं 

कुछ यादगार तस्वीरों को 
फ्रेम में जड़ कर 
घर की दीवारों पर टांगा  गया है 
कुछ शेल्फ में करीने से 
सजाई गईं हैं
एल्बम में पड़े तस्वीरों की भी 
कतई कमी नहीं है

बीते हुए समय की गवाह
नई और पुरानी कई तस्वीरें
यूँ हीं बेतरतीब 
आलमारी में पड़ी हैं 
उनमे से कुछ एक दूसरे से चिपक रही हैं 
कुछ पीली पड़  रही हैं 
कुछ पर सफ़ेद धब्बे सा
कुछ चस्पां होने लगा है

लेकिन
कुछ तस्वीरें कहीं नहीं हैं
न कैमरे में
न लैपटॉप में
न फ्रेम में
न एल्बम में
न तस्वीरों के मलबे में

वे गुम नहीं हुई हैं
वे धुंधली पड़ने का नाम नहीं लेतीं
वे आँखों में टंगी हुई है
शायद.  


  

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...असली तस्वीरें सिर्फ आँखों में टंकी मिलती हैं....जिन पर वक्त अपना असर नहीं दिखा पाता...

    नीरज

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  2. saurabh,
    achchi kavita bani hai, basharte antim shabd SHAYAD hata do!
    Do finish this poem with an AFFIRMATIVE tone, which is the undertone of your this poem.

    Rahul Rajesh,
    Ahm.

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